गंधनाद मृदुहास - (भाग 1 तथा २ )
गंधनाद मृदुहास भाग - १ व तथा भाग 2 में शरीर के जिंदा धारण कार्य को अवलोकन में लेकर विशिष्ट पद्धति से अवलोकन किया है , तथा अस्वस्थता को स्वास्थ्य पर लाते समय उस शरीर का अष्टविकार धारण , स्पंदन अवस्था , इनको संतुलित करने का प्रयास किया है । तथा ऊर्जा उर्ध्वगमन उसके साथ हो जाए , ऐसी प्रयासता की है । इस धारण पर उसमें होने वाले यंत्रों की जो विज्ञान अवतरीता है । वह आकृति धारण पर लेकर कागज पर अवतरीत की है । उसकी कार्य धारणता किसी धर्म जाति वर्ग तथा इस तरीके से किसी धारण पर चलीत मात्र नहीं है। बल्कि मनुष्य के संवेदन धारणता को संयोजिता करके सभी मनुष्य मात्र पर आविष्कृत है । इन यंत्रों की उपलब्धता "संवेदन शास्त्र " के माध्यम से की है।
ब्रह्मसूक्त यह किताब शरीर की अंदरूनी चलन की प्रवाहता जिंदा स्थिती में तथा मृत्यु धारण में कैसी चलती है । उसका शरीर कार्य की चलनता उसके चलन की सामर्थ्यता चलन स्वरूप में है । तथा मृत्यु घटना में शरीर की प्रक्रिया अंदरूनी कार्य को कैसी घटना वर्तना में , संवेदना धारण पर और अवतरीता लेकर शब्द तक लाने की प्रयासता की है ।
अगर शरीर का जिंदापन तथा मृत्यु धारण इनका संबंध रोज के दिनचर्या धारण पर सहायता कर सकता है । इही गुप्त धारणता मनुष्य को ज्ञान में आए तो तब हर कोई उसकी शरीर स्वस्थ्यता तथा मृत्यु घटना को सामना करने के लिए खुद ब खुद उसका मददगार हो सकता है । इसलिए अति प्रयास धारण पर यह सूक्त वर्तनता यहां उपस्थित है , कि जहां केवल उसकी मदद की प्रत्यक्षता उसके नियमों के साथ ही अपना के की जा सकती है ।
इसकी बयान की तथा सुक्त की यह किताब है ।
आत्मकुंज किताब में , सृष्टि धारण में कार्यकरण परे जो शरीर संचलन की धारणता है , जहां शब्द संकेत पर अवतरिता नहीं है । जहां क्यों है ? कैसे हैं ? किस वजह से हैं ?
या किसके सरीखी की है । इन बातों के परे की अवतरिता प्रत्यक्षता देती है। ऐसी वर्तन पर जो अस्तित्वके एक परमाणु धारणता की संयोजकता है । उसका उपयोग अंश मात्रापर लेकर यहां मैजिक नाम धार पर जो यंत्र की उपलब्धता हुई है, उसकी संयोजनता जहां तक शब्द बन सकते हैं वहां तक किया है । तथा जहां शब्द में लाना मुलश्किल हुआ है वहां अस्तित्व के कृपाधारणता पर "कार्य कारण धारण छोड़कर " उसको उनको उपलब्धता पर लिया है । ऐसी कुछ यंत्र की यह किताब है ।
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