प्राणप्रखरताके प्रयत्नसे संवेदन शास्त्रको पुनरुज्जीवित करनेवाली माँ धर्मदीक्षाजी महासद्गुरु ओशों की शिष्या हैं । २९ मई १९७१ को महासद्गुरु ओशोंद्वारा दीक्षा संविधानको प्राप्त हुई है, तथा २९ जनवरी १९९२ के सुदिनी उन्होंने समाधी कमलकी सुगंध पायी है। संवेदन शास्त्र में प्राणकी शरीरमें आत्मगंधित होनेकी रीती है, उस रीतीकी परम प्रगाढताकी विज्ञानता है, प्राणी जीवन और संवेदनशास्त्र जन्मपरे तथा मृत्यूके साथकी परम एक राह की मार्गता है। उस शास्त्रके द्वारा माँ धर्मदीक्षाजी ने अनेक किताबों द्वारा तथा विविध यंत्रोंद्वारा मनुष्य जीवनका, १) शरीरस्वास्थ्य २) मानसिक संतुलनता ३) ध्यान भक्ती की सुगम चलीता अनेक अनेक तरीकेकी विविधता प्रस्तुत करके मनुष्य जीवनकी खुशहालताकी संशोधना की है।
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संवेदन शास्त्र याने क्या ?
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The Information about few Yantras are given below:
Note: They are useful and supportive for healing the Disease.Though its outcome result also always depends on:
1 - The Receptivity of energy by the diseased person.
2 - The Intencity and the Degree of Disease.
3 - The age of the Disease Person.
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'नाद नुपुर हृदहार ' यह आरती संग्रह प्राण जीवन की एक जिंदाहाल पुकार है , यहां सिर्फ देवी देवताओं की आरती आधारित की नहीं है , बल्कि काल की तत्परता देखकर सुक्ष्मता अनुरूप शक्तियों को नास्तिकता तथा अज्ञान के परदे के राक्षसी वृत्तियों का संहार करने का आवाहन किया है । मनुष्य जीवन जड़ता और सूक्ष्मता इन दो धाराओं के ऊपर संतुलित पात्रता रखता है , वहां जड़ता धारण की पात्रता अगर विकसन में प्रगाढ़ता लेती गई और जीवन की सूक्ष्मता अज्ञान धारणपर रहे या अविज्ञान धारणा में रह गई तो भी जीवन के स्वछंदकी मुक्त सांस मनुष्य ले सकेगा नहीं । इस जिंदाहाल सत्य को प्रत्यक्षता मां धर्म दीक्षाजी के करुणा तत्परता में हरदम क्रियाशील रहकर सूक्ष्म शक्ति धाराओं से विज्ञानित परम सूक्ष्मता की गुप्तता विज्ञान मार्ग से प्रकट करने के उनके अविश्रांत परीक्षमसे 'नाद नुपुर हृदहार यह काव्यमयता सूक्ष्म शक्तियों के जागृत धारणके आवाहन की परम सुगंधता लेकर यहां प्रकट हो रही है।
पंचतत्व 'न होने वाले प्राणधारणाओंकी ' और "पंचतत्व धारीत " मनुष्यकी प्राणपर तथा शरीर तापमानपर किस तरह एक गुंथन की सृष्टि रचना में गठन धारता है , उसकी आकृतिकृत विज्ञानता इस आरती संग्रह में सखोल विज्ञान धारीत है।
तथा " जड़ पंचतत्व नहीं होने वाले " प्राण धारणाओंको मनुष्य जीवन सुखमया होने के आवाहनके वर्तनपर यह किताब भाग -१ तथा भाग - २ अवतरीत है।
नाड़ी संस्थान के बिगाड़ वर्तन से होने वाली बीमारियां नाड़ी संस्थान परम पात्रता में लाकर ठीक करने के लिए नाड़ी संस्थान उत्तम पात्रतामें आएगा ऐसी स्थिति पात्रता अनुरूप ७०५६ यंत्रों की यह किताब वर्तना है। इस किताब में सूर्य शक्ती नजर से याने आंख से आकर्षण पात्रता में लेकर नाड़ीसंस्थान को बलवर्तना आ जाए, ऐसे प्रयोग से संवेदन शास्त्र की यह परम शोध वर्तना है ।
चेतना विधुता कार्यकरण तथा सुस्थिती संयोजन , इस किताब के भाग 2 में जो यंत्र वर्तना सविस्तार से उपलब्धता प्राप्त है, उन यंत्रों की थोड़े में मालूमात तथा इस्तेमाल करने की रीती यंत्र के साथ इस किताब में है।
' रीढ़ ' शरीर धारण पर , एक उपजाऊ खेत है । शरीर में रीढ़ की स्वथ्यता परम है । लेकिन रीढ़ का स्वास्थ्य अंदरूनी धारण पर किन-किन बातों पर अवलंबन रखता है । इसकी जानकारी होना आवश्यक है । इसलिए इस किताब में रीढ़ इस अवयव की शरीर में क्या महत्वता है । उसके बयान के साथ रीढ़ को स्वथ्यता पाने के लिए खोपड़ी के मध्य को विशिष्ट पदार्थ का विशिष्ट तिथी धारण पर विशिष्ट मंत्र उच्चारण करके मसाज करके रीढ़ की स्वथ्यता पाने का यहां प्रयास किया है । कि जो रीढ़के स्वास्थ्य को सहायता देने को उपयुक्तता में आ जाए इसकी उपचारिता इस किताब में है ।
विचारों की कतार या प्रहारता मस्तिष्क कार्य में जिस रीती के गती बद्धता को अवतीर्णता देती है , उस कार्य की केंद्र धारणा शरीर के नाभि केंद्र में है । उस केंद्र को अंदरूनी आंख से देखकर विचारधारा के प्रक्रिया को उलट प्रक्रिया वर्तना में लाकर याने विचारों की कड़ी उसकी वर्तना कायम रखती है । उस कार्यता को बाधा नहीं देते हुए वह श्रृंखला याने विचारों की कतार "कार्यता ना पात्रता में " याने क्रिया पात्रता खत्म करने में लाया जाना , ऐसी वर्तना लाया जा सकता है । ऐसे पात्रता का ध्वनी अर्थात मंत्र का उच्चारण करके नाभी केंद्र से ही विचारों को बल धारणा नहीं मिल जाए , ऐसा मंत्र उच्चार करके, निर्विचार को सधने की इस किताब में की गई उपचार पद्धति है ।
Mudras (Body Posture) for the Body, Which Help's to Heal Disease Cancer.
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These Sukta and Kavchs will be helful to get healed from all Diseases.
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